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दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले - मिर्ज़ा अज़फ़री कविता - Darsaal

दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले

दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले

कौन नित उठ के मिरी जान ये पापड़ बेले

चोली मस्की है खुले बंद गरेबाँ ये फटा

कौन सी जाए से बन आए मियाँ अलबेले

मेल तेरे का कोई हम को सजीला न मिला

देख डाले हैं हर इक शहर के मेले-ठेले

ज़ुल्म की रहती है मुझ पर जो ये ले ले दे दे

काएनात अपनी मिरे पास है जो कुछ ले ले

नोश फ़रमाते हो बातों में मज़े से अक्सर

धेंदस और कदूही और खीरे चचींदे केले

दिल भरा है तो कहो और नहीं तो बिस्मिल्लाह

और मन मानती दस लाख तो गाली दे ले

तेरे धमकाने से कोई 'अज़फ़री' धमके हैगा

खेल ऐसे हैं मियाँ हम ने बहुत से खेले

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