मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
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मैं ने कैसे कैसे मोती ढूँडे हैं
न इंतिज़ार करो कल का आज दर्ज करो
तू ने ऐ वक़्त पलट कर भी कभी देखा है
तमाम शहर में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद
ये कैसी आग मुझ में जल रही है
तेरी दहलीज़ पे इक़रार की उम्मीद लिए
ख़ुद अपने क़त्ल का इल्ज़ाम ढो रहा हूँ अभी
मैं ही आईना-ए-दुनिया में चला आया हूँ
क्या पता जाने कहाँ आग लगी
मैं अधूरा सा हूँ उस के अंदर
जश्न होता है वहाँ रात ढले