ये कैसी आग मुझ में जल रही है
ये कैसी आग मुझ में जल रही है
ये कैसी बर्फ़ मुझ में गल रही है
कोई तस्बीह मुझ में पढ़ रहा है
कोई क़िंदील मुझ में जल रही है
मुसाफ़िर जा चुका लम्बे सफ़र पर
अभी तक धूप आँखें मल रही है
सभी बाहोँ को फैलाए खड़े हैं
क़यामत है कि हर-पल टल रही है
इज़ाफ़ी हो चुका है मत्न सारा
कहानी हाशिए से चल रही है
मुझे सब दफ़्न कर के जा चुके हैं
मगर ये साँस अब तक चल रही है
बहुत रोएगी ये लड़की किसी दिन
जो मेरे साथ हंस कर चल रही है
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