ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
पंद-गो यूँही न कर अब ख़लल औक़ात के बीच
ज़िंदगी किस के भरोसे पे मोहब्बत मैं करूँ
एक दिल ग़म-ज़दा है सो भी है आफ़ात के बीच
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सुना है चाह का दावा तुम्हारा
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर