कोह ओ सहरा भी कर न जाए बाश
आज तक कोई भी रहा है याँ
है ख़बर शर्त 'मीर' सुनता है
तुझ से आगे ये कुछ हुआ है याँ
Mohsin Naqvi
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मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
फिर भी करते हैं 'मीर'-साहिब इश्क़
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
हो आशिक़ों में उस के तो आओ 'मीर'-साहिब
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग