हुआ है अहल-ए-मसाजिद पे काम अज़-बस तंग
न शब को जागते रहने का इज़्तिराब करो
ख़ुदा करीम है उस के करम से रख कर चश्म
दराज़ खींचो किसू मय-कदे में ख़्वाब करो
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
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हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
'मीर' को ज़ोफ़ में मैं देख कहा कुछ कहिए
कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
सुना है चाह का दावा तुम्हारा
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ
न जानूँ 'मीर' क्यूँ ऐसा है चिपका
न समझा गया अब्र क्या देख कर