तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
ख़ूब है ख़ाक से बुज़ुर्गों की
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
इतने भी हम ख़राब न होते रहते
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
तुम तो ऐ मेहरबान अनूठे निकले
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब