चलने का तो हो गया बहाना तुम को
फ़ित्ना है हर इक तरह उठाना तुम को
जाते हो अदू के साथ आगे से मिरे
बे-आग के आ गया जलाना तुम को
Parveen Shakir
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मैं ख़ाक था आदमी बनाया तू ने
ज़ोरों पे है रोज़ ना-तवानी मेरी
जो है सो पस्त सब से आली तू है
है उन की नज़ाकतों का पाना मुश्किल क्या कीजे बयाँ
रहबान का क़ैस का महबूब है तू
जो नख़्ल हो ख़ुश्क उस का फलना क्या है