ज़ोरों पे है रोज़ ना-तवानी मेरी
रहबान का क़ैस का महबूब है तू
चलने का तो हो गया बहाना तुम को
जो है सो पस्त सब से आली तू है
मैं ख़ाक था आदमी बनाया तू ने
जो नख़्ल हो ख़ुश्क उस का फलना क्या है
है उन की नज़ाकतों का पाना मुश्किल क्या कीजे बयाँ