उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ
फिर एक बार उसी अंजुमन के साथ आओ
हम अपने एक दिल-ए-बे-ख़ता के साथ आएँ
तुम अपने महशर-ए-दार-ओ-रसन के साथ आओ
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गरेबाँ-चाक महफ़िल से निकल जाऊँ तो क्या होगा
अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
तू ने किस दिल को दुखाया है तुझे क्या मालूम
ये रक़्स रक़्स-ए-शरर ही सही मगर ऐ दोस्त