तू ने किस दिल को दुखाया है तुझे क्या मालूम
किस सनम-ख़ाने को ढाया है तुझे क्या मालूम
हम ने हँस हँस के तिरी बज़्म में ऐ पैकर-ए-नाज़
कितनी आहों को छुपाया है तुझे क्या मालूम
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गरेबाँ-चाक महफ़िल से निकल जाऊँ तो क्या होगा
ये रक़्स रक़्स-ए-शरर ही सही मगर ऐ दोस्त
अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ