अभी न रात के गेसू खुले न दिल महका
कहो नसीम-ए-सहर से ठहर ठहर के चले
मिले तो बिछड़े हुए मय-कदे के दर पे मिले
न आज चाँद ही डूबे न आज रात ढले
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तू ने किस दिल को दुखाया है तुझे क्या मालूम
गरेबाँ-चाक महफ़िल से निकल जाऊँ तो क्या होगा
ये रक़्स रक़्स-ए-शरर ही सही मगर ऐ दोस्त
उसी अदा से उसी बाँकपन के साथ आओ