बच्चा और मुर्ग़ा
इक बच्चे ने मुर्गे से कहा
प्यारे मुर्गे ये शोर है क्या
सुन सुन तेरी कुकड़ूँ-कूँ
मैं सख़्त परेशाँ होता हूँ
जब तारे छुपते होते हैं
सब चैन आराम से सोते हैं
उस वक़्त से तू चिल्लाता है
क्यूँ इतना शोर मचाता है
मालूम हो आख़िर बात है क्या
कुछ अपने दिल का हाल बता
जा दूर मचा ये शोर कहीं
पढ़ने में दिल लगता ही नहीं
मुर्गे ने सुना बच्चे का बयाँ
बोला न हो नाराज़ मियाँ
तुम सब नींद के माते हो
सो सो वक़्त गँवाते हो
ये मैं जो शोर मचाता हूँ
मालिक को पुकारे जाता हूँ
ये मेरी इबादत है प्यारे
अल्लाह की ताअत है प्यारे
मैं क़हर से उस के डरता हूँ
हर वक़्त इबादत करता हूँ
जब सुब्ह को बाँग मैं देता हूँ
और नाम ख़ुदा का लेता हूँ
तुम कितने ग़ाफ़िल होते हो
मैं जागता हूँ तुम सोते हो
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