हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

इस घनी रात से दिल डरता है

बर्फ़-ए-एहसास न गल जाए कहीं

सैल-ए-औक़ात से दिल डरता है

तू भी ऐ दोस्त न हो जाए जुदा

अब हर इक बात से दिल डरता है

ये कड़ी धूप दहकता सूरज

साए के सात से दिल डरता है

हाए वो रेंगती तन्हाई जब

अपनी ही ज़ात से दिल डरता है

कैसे देखेंगे वो उजड़ी आँखें

अब मुलाक़ात से दिल डरता है

ज़ख़्म हो जाएँगे बाग़ों के हरे

'शाम' बरसात से दिल डरता है

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