किस को होगा तिरे आने का पता मेरे बा'द
हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है
झाँकते लोग खुले दरवाज़े
किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना
कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था
मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे
राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है