रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उम्मीद
उलझे उलझे हसीं ख़यालों में
हँस रहा था गुलाब का इक फूल
यूँ किसी के सियाह बालों में
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद