आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
बहर-ए-उल्फ़त में ग़र्क़ हो जाए
बे-नियाज़-ए-ग़म-ए-जहाँ हो कर
तेरी रंगीनियों में खो जाए
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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एक मुद्दत सितम उठाने पर
फिर किसी बात का ख़याल आया
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी