अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
फिर किसी बात का ख़याल आया
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल