दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
एक मुद्दत सितम उठाने पर