ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को