शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ