फिर किसी बात का ख़याल आया
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी