रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
एक मुद्दत सितम उठाने पर
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
फिर किसी बात का ख़याल आया
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त