एक मुद्दत सितम उठाने पर
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
फिर किसी बात का ख़याल आया
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को