वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
एक मुद्दत सितम उठाने पर
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ