हाए ये सादगी ओ पुरकारी
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
एक मुद्दत सितम उठाने पर