ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
एक मुद्दत सितम उठाने पर