हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
एक मुद्दत सितम उठाने पर
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा