मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
एक मुद्दत सितम उठाने पर
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
ज़िंदगी इस तरह भटकती है