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कुत्ते और ख़रगोश - किश्वर नाहीद कविता - Darsaal

कुत्ते और ख़रगोश

दो ख़रगोश थे प्यारे प्यारे

इक मोती इक हीरा

मोती काले कानों वाला

हीरा भूरा भूरा

दो कुत्तों ने देखा उन को

चैन से यूँ जो बैठा

मुँह में एक के पानी आया

दूसरा फ़ौरन लपका

चैन से कोने में बैठे थे

सोचते थे कि जाएँ

सामने के खेतों से दो इक

गाजरें तोड़ के लाएँ

भागे सरपट देख के कुत्ते

दोनों ही ख़रगोश

मौत नज़र आती थी उन को

और न था कुछ होश

भागते भागते हीरा बोला

ये कुत्ते हैं शिकारी

मोती बोला तुम पागल हो

अक़्ल ख़राब तुम्हारी

हीरे को ग़ुस्सा फिर आया

फुला के दुम वो बोला

तुम ने मुझ को क्या समझा है

कर दूँ तुम को सीधा

इधर वो आपस में लड़ते थे

उधर वो कुत्ते पहुँचे

दोनों ख़रगोशों की जानिब

दोनों कुत्ते लपके

ख़रगोशों ने बहस में पड़ के

हाए जान गँवाई

सच है ब'अद में पछताने से

किस ने इज़्ज़त पाई

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