Ghazals of Khwaja Meer Dard
नाम | ख़्वाजा मीर 'दर्द' |
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अंग्रेज़ी नाम | Khwaja Meer Dard |
जन्म की तारीख | 1721 |
मौत की तिथि | 1785 |
जन्म स्थान | Delhi |
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है
मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
जग में कोई न टुक हँसा होगा
जग में आ कर इधर उधर देखा
इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है
हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें
दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा