किसी को देखूँ तो माथे पे माह-ओ-साल मिलें
किसी को देखूँ तो माथे पे माह-ओ-साल मिलें
कहीं बिखरती हुई धूल में सवाल मिलें
ज़रा सी देर दिसम्बर की धूप में बैठें
ये फ़ुर्सतें हमें शायद न अगले साल मिलें
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किसी को देखूँ तो माथे पे माह-ओ-साल मिलें
कहीं बिखरती हुई धूल में सवाल मिलें
ज़रा सी देर दिसम्बर की धूप में बैठें
ये फ़ुर्सतें हमें शायद न अगले साल मिलें
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