तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
निखर रहे हैं, मिरे दर्द की फुवार के साथ
मैं सोचता हूँ, कभी तुम भी लौट आओगे
तुम्हारा भी तो तअल्लुक़ है, कुछ बहार के साथ
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काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
आरज़ू के दिए जलाने से
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
दिल-जलों को सताने आए हैं
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम