तुम घटाओं का एहतिमाम करो
इज़्न-ए-जाम-ए-शराब हम देंगे
तुम गुनाहों का लुत्फ़ तो ले लो
हश्र के दिन हिसाब हम देंगे
Jaun Eliya
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तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
दर्द का जाम ले के जीते हैं
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त