तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
चाँदनी किस लिए तरसती है
जाम अब क्यूँ खनकते रहते हैं
ये घटा किस लिए बरसती है
Anwar Masood
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Parveen Shakir
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दिल-जलों को सताने आए हैं
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
दर्द का जाम ले के जीते हैं
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
आरज़ू के दिए जलाने से
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए