सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
दर्द के बावजूद जीते हैं
ज़िंदगी ज़हर है, मगर हम लोग
छान कर गेसुओं में पीते हैं
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
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तुम गुनाहों से डर के जीते हो
आरज़ू के दिए जलाने से
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
दिल-जलों को सताने आए हैं
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
दर्द का जाम ले के जीते हैं