न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
न तेरी याद की अब चाँदनी बरसती है
ये कैसा वक़्त, मोहब्बत में तेरी आया है
मिरी हयात, तिरे ग़म को भी तरसती है
Jaun Eliya
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बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
आरज़ू के दिए जलाने से
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
दर्द का जाम ले के जीते हैं
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम