मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
फ़ज़ा-ए-दर्द-ए-तमन्ना को रास आ न सकी
ख़ुशी उफ़ुक़ पे खड़ी देखती रही मुझ को
उसे बुला न सका, ख़ुद वो पास आ न सकी
Rahat Indori
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बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
आरज़ू के दिए जलाने से
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी