मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
ये कौन चाँद से दामन बचा के गुज़रा है
मिरे उदास दरीचे मुझे बताते हैं
बड़े ही दर्द से कोई बुला के गुज़रा है
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आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
दिल-जलों को सताने आए हैं
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
दर्द का जाम ले के जीते हैं
आरज़ू के दिए जलाने से