दिल-जलों को सताने आए हैं
ग़म-ज़दों को रुलाने आए हैं
उफ़! ये बे-दर्द शाम के साए
हसरतों को जगाने आए हैं
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
आरज़ू के दिए जलाने से
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए