दर्द का जाम ले के जीते हैं
ज़ब्त से काम ले के जीते हैं
लोग जीते हैं सौ बहानों से
हम तिरा नाम ले के जीते हैं
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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तुम गुनाहों से डर के जीते हो
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी