ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
कितने होंटों के जाम तोड़े हैं
कितनी ज़ुल्फ़ों के साए मिलते थे
कितनी ज़ुल्फ़ों के साए छोड़े हैं
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
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काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
दिल-जलों को सताने आए हैं
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी