आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
आ कि इशरत का गीत गा लें हम
ज़िंदगी उम्र भर का रोना है
आ कि पल भर को मुस्कुरा लें हम
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आरज़ू के दिए जलाने से
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
दर्द का जाम ले के जीते हैं
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही