सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा
सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा
सोने में तुला चाँदी के दरिया में बहा
लेकिन न ज़र-ओ-माल हुए दामन-गीर
क्या सब्र ने तौक़ीर बढ़ाई आहा
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सदियों मैं हवस-ख़ाना-ए-हस्ती में रहा
सोने में तुला चाँदी के दरिया में बहा
लेकिन न ज़र-ओ-माल हुए दामन-गीर
क्या सब्र ने तौक़ीर बढ़ाई आहा
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