ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत' क्या कहें हम फ़िक्र को अपनी
ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत' क्या कहें हम फ़िक्र को अपनी
हमारा शेर हैगा बादा-ए-वहदत का पैमाना
वले जैसा कोई हो उस को वैसा नश्शा करता है
ज़नाने को ज़नाना और मर्दाने को मर्दाना
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ब-क़ौल-ए-सोज़ 'जुरअत' क्या कहें हम फ़िक्र को अपनी
हमारा शेर हैगा बादा-ए-वहदत का पैमाना
वले जैसा कोई हो उस को वैसा नश्शा करता है
ज़नाने को ज़नाना और मर्दाने को मर्दाना
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