चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
फिर ये बीमार किस के घर जाएँ
आज का ग़म बड़ी क़यामत है
आज सब नक़्श-ए-ग़म उभर जाएँ
है बहारों की रूह सोग-नशीं
सारे औराक़-ए-गुल बिखर जाएँ
नाज़-परवर्दा बे-नवा मजबूर
जाने वाले ये सब किधर जाएँ
कल का दिन हाए कल का दिन ऐ 'जौन'
काश इस रात हम भी मर जाएँ
है शब-ए-मातम-ए-मसीहाई
अश्क दामन में ता-सहर जाएँ
मरने वाले तिरे जनाज़े में
क्या फ़क़त हम ब-चश्म-तर जाएँ
काश दिल ख़ून हो के बह जाए
काश आँखें लहू में भर जाएँ
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