फूलों से तमीज़-ए-ख़ार पैदा कर लें
मिलना किस काम का अगर दिल न मिले
अब दुश्मन-ए-जाँ ही कुल्फ़त-ए-ग़म साक़ी
हर क़ल्ब पे बिजलियाँ गिराती आई
अंदाज़-ए-जफ़ा बदल के देखो तो सही
तुम तेशा-ए-बाग़बाँ से क्यूँ मुज़्तर हो
नाला तेरा नाज़ से बाला है
सरमाया-ए-ए'तिबार दे दें तुम को
अफ़्लास अच्छा न फ़िक्र-ए-दौलत अच्छी