आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
अपने आईना-ए-तमन्ना में
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
एक कम-सिन हसीन लड़की का
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
चंद लम्हों को तेरे आने से