हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अपने आईना-ए-तमन्ना में
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
रात जब भीग के लहराती है
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इक ज़रा रसमसा के सोते में