इक ज़रा रसमसा के सोते में
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
अंगड़ाई ये किस ने ली अदा से
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
तितली कोई बे-तरह भटक कर